कॉलेज के दिन थे और भविष्य की बातों में एक रात सलिल, विजय और मैं उलझे थे। बात धीरे धीरे गंभीर से हल्की हो रही थी। हम तीनों इस बारे में अपने विचार कर रहे थे की हमारा भावी जीवनसाथी कैसा हो। उन दिनों हम तीनों में से किसी एक का दिल कहीं उलझा हुआ था। किसका ये मैं नहीं बताऊंगा क्योंकि बात निकलेगी तो फ़िर दूर तलक जाएगी।

हम सभी ने अपनी अपनी पसंद बताई। कैसा जीवन साथी चाहते हैं, उनमें क्या खूबियाँ हों आदि आदि। मैं हमेशा से शादी अरंजे ही चाहता था। ठीक ठीक याद नहीं बाकी दोनों क्या चाहते थे लेकिन शायद लव मैरिज के पक्षधर थे। ये कॉलेज के दिनों की बात हो रही है और हम तीनों को नहीं पता था कि भविष्य में क्या होने वाला है।

जब मैं पहले दिल्ली और फ़िर मुम्बई आया तो परिवार में तो नहीं लेकिन रिश्तेदारों ने ये मान लिया थे कि लड़का तो हाँथ से गया। दिल्ली में अपनी मित्र वाली घटना के बारे में तो बता ही चुका हूँ। लेकिन इससे ज़्यादा कुछ हुआ नहीं या कहें होने नहीं दिया। इस बारे में ज़्यादा नहीं। दिल्ली जाने से भोपाल में मेरी नादानियों का ज़िक्र भी किया जा चुका है। माता-पिता ने सिर्फ ये हिदायत ही दी थी कि अगर तुम्हें कोई पसंद हो तो बाहर से पता चले उसके पेजले हमको बताना। जब कभी मेरी कोई महिला सहकर्मी को मिलवाता तो क्या माजरा होता होगा आप सोच सकते हैं।

मेरी लिस्ट कोई बहुत लंबी नहीं थी लेकिन अपने जीवनसाथी से सिर्फ दो एक चीजों की अपेक्षा थी। पढ़ी लिखी तो हों ही इसके साथ बाहर के कामकाज के लिये मुझ पर निर्भर कम से कम रहें। मुम्बई में इसकी ज़रूरत बहुत ज़्यादा महसूस हुई इसलिए इसको मैंने सबसे ऊपर रखा। लेकिन इसके चलते रिश्तेदारों के साथ बड़ी मुश्किल भी हो गयी जिसका असर अभी तक बरक़रार है।

जब बहुत सारी लड़कियों से मिलकर अपनी होने वाली पत्नी से मिला तो शायद पहली बार मैंने किसी के पक्ष में कुछ बात करी थी। माता पिता ने इसे पॉजिटिव माना और फ़टाफ़ट आगे बढ़कर बात पक्की कर दी। हमारी जोड़ी को मैं सही में राम मिलाय जोड़ी कहता हूँ क्योंकि श्रीमतीजी के पिता के पास भी कुछ और विवाह प्रस्ताव थे। लेकिन मेरे स्वर्गीय ससुर साहब ने अन्य प्रस्तावों को मना कर दिया और मुझे चुना। पत्नी जी ने भी अपने पिता, जिन्हें घर में राम बुलाते हैं, के निर्णय से सहमति जताई। तो ऐसे हुई हमारी राम मिलाय जोड़ी।