विज्ञापन देखने का मुझे बड़ा शौक है। अगर मैं ये कहूँ की इस चक्कर में मैंने कई सारे प्रोग्राम देख डाले तो कुछ गलत नहीं होगा। जब लोग उस विज्ञापन में ब्रेक में टीवी की आवाज़ बंद कर देते हैं, मैं उसी दो मिनट के लिये 22 मिनट का प्रोग्राम झेलता हूँ। आज भी मैं अखबार या मैगज़ीन में विज्ञापन देख उसकी एजेंसी जानने की उत्सुकता रहती है। मुझे इस क़दर इस क्षेत्र में काम करने की ललक थी कि अपनी कंपनी का नाम भी सोच लिया था।

मेरे खयाल से अपनी बात 10 सेकंड से एक मिनट में ऐसे कहना की आपको पसंद भी आये और याद भी रहे, अपने आप में एक कला है। ख़ैर, वहाँ तो मेरी कोशिश सफ़ल नहीं हुई लेकिन उसी से थोड़ी बहुत जुड़ी हुई पत्रकारिता में जगह मिल गयी। यहाँ भी आपको अपनी हैडलाइन को लेकर बहुत क्रिएटिव होना पड़ता है। जैसे ये

उस दिन जब चुनाव के परिणाम आये तो सभी अखबारों को यही ख़बर देनी थी। लेकिन कोलकाता से प्रकाशित द टेलीग्राफ ने बख़ूबी ये काम किया। कम से कम शब्दों में। वैसे इस पेपर में ऐसा अक्सर होता है। अगर आप भी ऐसे ही कुछ क्रिएटिव देखना चाहें तो सोशल मीडिया पर इनका एकाउंट ज़रूर चेक करें।

अभी कुछ दिनों से एक फ़ोटो लोगों के द्वारा शेयर की जा रही है। उसमें 40 अपने समय के बेहतरीन विज्ञापन छुपे हैं। कैडबरी के विज्ञापन ‘क्या स्वाद है जिंदगी में’ बड़े अच्छे थे। वैसे ही सर्फ की ललिता जी या धारा की जलेबी का लालच करता बच्चा।

मेरी पुरानी संस्थान में मेरे एक साथी ने मुझे समझाइश दी थी कि अपनी कला को बेचना सीखो। इसके लिये उन्होंने मुझे कई सेमिनार, नेटवर्किंग इवेंट्स में जाने की सलाह भी दी। लेकिन मुझे घर से बाहर निकालना एक मुश्किल काम है। ऐसा मैं मानता हूँ और अब इतने वर्षों के बाद श्रीमती जी भी मान चुकी हैं। तो नतीजा ये होता कि फ़ीस तो भर दी जाती इन प्रोग्राम में जाने के लिये लेकिन जाना नहीं हो पाता।

खुद को बेचना एक कला है। आपको अपने आसपास ऐसे लोग मिल ही जायेंगे। काम कुछ करेंगे नहीं लेकिन बातें आप करवा लीजिये। अगर आपने सई परांजपे की कथा देखी हो तो जैसा उसमें फारुख शेख़ का क़िरदार रहता है। वही लोग बहुत बार आगे भी बढ़ते हैं। मेरी टीम में एक बहुत ही शांत, सौम्य स्वभाव वाले मोहम्मद उज़ैर। उनकी लेखनी के बारे में तो आपको बता ही चुका हूँ। लेकिन बहुत ही कमाल के इंसान। जितना समय उनके साथ काम किया उसमें एक बार ही मैंने उन्हें गुस्से में देखा है। अगर मुझे किसी को अपनी टीम में रखने का गर्व है तो मोहम्मद उस लिस्ट में टॉप 3 में शामिल होंगे।

वापस विज्ञापन की रंगबिरंगी दुनिया में लौटते हैं। वैसे तो आपका काम ही बोलना चाहिये लेकिन कई बार इसकी आवाज़ लोगों के कानों तक नहीं पहुँचती है। तो थोड़ा सा विज्ञापन का सहारा लेने में क्या बुराई है। जैसे सलमान खान और कैटरीना कैफ़ इन दिनों हर चैनल पर भारत को बेचते हुये दिख जाते हैं।

अपडेट: घोर आलस्य के बाद मैंने पहला पत्र लिख ही दिया और वो अब अपने गंतव्य के लिये रवाना हो चुका है। अब दूसरे पत्र की बारी है। उसका मुहूर्त भी जल्द ही निकाल लेंगे।